Friday, July 30, 2010

||सत्ताईस||

उड़ जाते हैं
बारूद के विस्फोट-भर से
कुछ पहाड़ वैसे होते हैं
नहीं उड़ते
दिल के विस्फोट से भी
कुछ पहाड़ ऐसे होते हैं

||अट्ठाईस||

प्रभु !
आपने एक समुद्र-मंथन से निकला
विष पिया था
देवताओं की प्रार्थना पर
आपको नीलकंठ कहते हैं
जो रोज
कितने ही समुद्र-मंथनों से निकला
विष पीता है
बिना किसी प्रार्थना के
उसको क्या कहते हैं ?

1 comment:

सहज साहित्य said...

क्षणि्काओं। पूरा भण्डार , पढ़कर मान उल्लसित हो उठा । यह हुई न बात । आपकी ढेर सारी रचनाएँ एक साथ पढ़ने को मिल गई ।