Thursday, May 27, 2010

क्षणिकाएं / डॉ0 उमेश महादोषी

//सत्रह//

बहुत उड़ लिए
आकाश में
पक्षी प्यारे!
अब उतरो धरती पर
सूंघो/ तुम भी
लहू की गंध
देखो / बने
बारूद के तारे

//अठारह //

लाल अक्षरों में
अब / हमें
रोपना ही होगा
पर्णहरित
अन्यथा / शब्द सारे
राख हो जायेंगे
और भाषा मर जाएगी


//उन्नीस//

तुम्हारी ओरसे / आज
मैं लड़ रहा हूँ, इतिदेव!
तारीखों को
गवाह बनने दो

कल मेरी ओर से
कौन लड़ेगा ?
उत्तर दो !


//बीस //

कुछ हारी, कुछ जीती
लग गई है होड़
बाजियों में
बिक गया है
वतन मेरा

दलालियों में




Sunday, May 16, 2010

क्षणिकाएं/ डॉ उमेश महादोषी

//तेरह//

आकाश को उतार कर
जिस्म से
मैं धरती होना चाहता हूँ
हे प्रतीक !
हटो अब
अपनी जगह
मैं स्वयं लेना चाहता हूँ.

//चौदह//

जितने तीर / तुम्हारे तरकश में थे
तुमने चला लिए
हमारी देह मगर खाली रही
घाओं के लिए
अब तुम सम्हालो देह अपनी
कुछ तीर हमारे पास भी हैं
देखना है / वक़्त
कौन सा इतिहास रचता है.

//पंद्रह//

उनके कान पर
जूं रेंगता तो है
पर जा छुपता है/ बालों में तुरंत
जरूरी है
हम खड़े हों पहले
उनके बालों के खिलाफ!


//सोलह//

कब तलक
अट्ठास करोगे
कान मूंदकर

हड्डियाँ
क्रांति का
शंख होती हैं.

Wednesday, May 5, 2010

क्षणिकाएं/ डॉ० उमेश महादोषी

//नौ //

खुदा! लगने लगा है
तेरी चापों से / बेहद डर
मत आया कर / अब
तू मेरे घर
रिसने दे मुझे
बनकर स्याही / मेरी कलम से
तेरी तूलिका से / छिटक गया है
मेरा मन!

//दस//

तालाब की मछली को
बार-बार पकड़ना चाहा
पर/ पकड़ नहीं आई

हर बार
पेड़ पर बैठी चिड़िया
मेरे कान में चहचहाई

//ग्यारह//
कलम की छोटी-सी कोख से
पैदा हुआ / इतना बड़ा मैं
लोगों ने
कलम का दर्द ही समझा
और मैं
रिसता रहा / स्याही बनकर
अच्छर-अच्छर ......!

// बारह //
गोबर में
छिपा है- खुदा
खाद के रास्ते
पौधों तक पहुंचता है
बदलकर अन्न में
मिटाता है- छुधा